जिन राहों को छोड़ दिया है
उन राहों पे जाना क्यों ?
सूखा बादल ,प्यासी धरती
सूरज को मनाना क्यों ?
जिन आँखों से अश्क न निकले
उन आँखों को रुलाना क्यों ?
समझ से भरे नासमझों को
बेवजह समझाना क्यों ?
दौलत से जो स्नेह को तौले
उन्हें स्नेह के बोल सिखाना क्यों ?
चाँद -तारों से भरी निशा को
सन्नाटे से मिलवाना क्यों ?
सभी समय की बर्बादी है।
उन राहों पे जाना क्यों ?
सूखा बादल ,प्यासी धरती
सूरज को मनाना क्यों ?
जिन आँखों से अश्क न निकले
उन आँखों को रुलाना क्यों ?
समझ से भरे नासमझों को
बेवजह समझाना क्यों ?
दौलत से जो स्नेह को तौले
उन्हें स्नेह के बोल सिखाना क्यों ?
चाँद -तारों से भरी निशा को
सन्नाटे से मिलवाना क्यों ?
सभी समय की बर्बादी है।
बहुत सुन्दर और भावुक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाऐं ----
सादर --
कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------
बहुत सुन्दर प्रसूति !
ReplyDeleteईश्वर कौन हैं ? मोक्ष क्या है ? क्या पुनर्जन्म होता है ? (भाग २ )
उत्तम प्रस्तुति।।।
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..शुभकामनाएं सहित..
ReplyDeleteआप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद ...
ReplyDeleteआपका अपनी ही कविता के अंत में दिया गया कमेण्ट एक मुस्कुराहट बिखेरता है होठों पर... सही कहा है आपने.. हर पंक्ति में एक प्रेरणा छिपी है!! बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ..कमेंट अच्छा लगा उसके लिए भी और रचना की तारीफ के लिए भी ....वैसे ये उसके लिए है जो मर्म को नहीं समझते ..और कवि ह्रदय की भावनाओं को समझने
ReplyDeleteमें असमर्थ होते हैं.....
सच्चाई
ReplyDeleteजो आपकी कविता में
बेबाकी से उतर आई
समय की बर्बादी है पर मन तो चाहता है न ... सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत ही रहिस्य से भरी पँक्तिया
ReplyDeleteआपके ब्लॉगसफर आपका ब्लॉग ऍग्रीगेटरपर लगाया गया हैँ । यहाँ पधारै
धन्यवाद शास्त्री जी .....
ReplyDeleteवाह !! बहुत खूब
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