Monday, 18 August 2014

क्यों ?

जिन  राहों को छोड़ दिया है 
उन राहों पे जाना क्यों ?

 सूखा  बादल ,प्यासी धरती 
सूरज को मनाना क्यों ?

जिन आँखों से अश्क न निकले 
उन आँखों को रुलाना क्यों ?

समझ से भरे नासमझों को 
बेवजह समझाना क्यों ?

दौलत से जो स्नेह  को तौले 
उन्हें स्नेह  के बोल सिखाना क्यों ? 

चाँद -तारों से भरी  निशा को 
सन्नाटे  से मिलवाना क्यों ?

                                                    
सभी समय की बर्बादी है। 




13 comments:

  1. बहुत सुन्दर और भावुक अभिव्यक्ति

    जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाऐं ----
    सादर --

    कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------

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  2. उत्तम प्रस्तुति।।।

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  3. सराहनीय प्रस्तुति

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..शुभकामनाएं सहित..

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  5. आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद ...

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  6. आपका अपनी ही कविता के अंत में दिया गया कमेण्ट एक मुस्कुराहट बिखेरता है होठों पर... सही कहा है आपने.. हर पंक्ति में एक प्रेरणा छिपी है!! बहुत सुन्दर!

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  7. बहुत-बहुत धन्यवाद ..कमेंट अच्छा लगा उसके लिए भी और रचना की तारीफ के लिए भी ....वैसे ये उसके लिए है जो मर्म को नहीं समझते ..और कवि ह्रदय की भावनाओं को समझने
    में असमर्थ होते हैं.....

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  8. सच्चाई
    जो आपकी कविता में
    बेबाकी से उतर आई

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  9. समय की बर्बादी है पर मन तो चाहता है न ... सुन्दर रचना.

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  10. बहुत ही रहिस्य से भरी पँक्तिया
    आपके ब्लॉगसफर आपका ब्लॉग ऍग्रीगेटरपर लगाया गया हैँ । यहाँ पधारै

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  11. धन्यवाद शास्त्री जी .....

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  12. वाह !! बहुत खूब

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