
नाउम्मीदी से भरे दिलों में
उम्मीद की किरण जगाते हो.… इसीलिए,,,
बसंत--- तुम..... ऋतुराज कहलाते हो.....
यहाँ-वहाँ सारे जहाँ में
छोटे-बड़े का भेद किये बिना
गुलशन को महकाते हो..... इसीलिए ,,,,
बसंत ---तुम.… ऋतुराज कहलाते हो.…
माँ शारदे का प्रसाद
होली का अल्हड आह्लाद
झोली में लेकर आते हो..... इसीलिये,,,,
बसंत ---तुम.…ऋतुराज कहलाते हो.…
गाँव शहर हर गली की बिटिया
निर्भय जीवन जी पाये
कोई भी दुष्कर्मी उसके
अस्मत / भावनाओं से खेल न पाये
फिज़ा में ये रंग कब-तक बिखराओगे
उसी बसंत का इन्तजार है
बोलो बसंत ! कब आओगे ?
बहुत सुन्दर रचना .. कहो वसंत कब आओगे .
ReplyDeleteगाँव शहर हर गली की बिटिया
Deleteनिर्भय जीवन जी पाये
कोई भी दुष्कर्मी उसके
अस्मत / भावनाओं से खेल न पाये
फिज़ा में ये रंग कब-तक बिखराओगे
उसी बसंत का इन्तजार है
बोलो बसंत ! कब आओगे ?
वाह ! बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति...! निशा जी ....
RECENT POST - आँसुओं की कीमत.
धन्यवाद कुलदीप जी ......
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, गूगल और 'निराला' - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteधन्यवाद .....
Deletebahut sundar abhivyakti !
ReplyDeleteNew post: शिशु
बहुत प्यारी रचना....
ReplyDeleteआपने पुकारा...अब वसंत आया ही समझिये..
अनु
गाँव शहर हर गली की बिटिया
ReplyDeleteनिर्भय जीवन जी पाये
कोई भी दुष्कर्मी उसके
अस्मत / भावनाओं से खेल न पाये
फिज़ा में ये रंग कब-तक बिखराओगे
उसी बसंत का इन्तजार है
बोलो बसंत ! कब आओगे ?
aane ko hi hai sunder bhav
Rachana
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (22-02-2014) को "दुआओं का असर होता है" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1531 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद शास्त्री जी
Deleteबड़ा कठिन बुलौवा दे दिया आपने वसंत को...
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति .....सुंदर वासंतिक भाव
ReplyDeleteवह बसंत भी आएगा एक दिन , मंगल कामनाएं !!
ReplyDeleteउजड़े को सँवारते हो
ReplyDeleteनाउम्मीदी से भरे दिलों में
उम्मीद की किरण जगाते हो.… इसीलिए,,,
बसंत--- तुम..... ऋतुराज कहलाते हो.....कहाते हो
अति सुन्दर अर्थ और प्रवाह ,आभार आपकी टिपण्णी का .
मौसमों का राजा बसंत ... ऐसे ही नहीं बना ... बाखूब ...
ReplyDeleteसही चित्रण
ReplyDeleteप्रभावित करती रचना .
ReplyDeleteनाउम्मीदी से भरे दिलों में
ReplyDeleteउम्मीद की किरण जगाते हो.
बसंत का आवाहन करती अच्छी कविता।
फिज़ा में ये रंग कब-तक बिखराओगे
ReplyDeleteउसी बसंत का इन्तजार है
बोलो बसंत ! कब आओगे ?
वाह ! बहुत ही सुंदर रचना लिख डाली ... निशा जी अपने बहुत खूब
बसंत का खूबसूरत चित्रण
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