जिन्दगी भी क्या अजीबोगरीब खेल दिखलाती है ? जो सोचते हैं वो होता नही है जो दीखता है उसे समझते नही है .....होना क्या चाहिए ..और होता क्या है ??????बस पल पल कर न जाने कैसे ......समय बीत जायेंगे ......वर्तमान अतीत बनकर यादों में खो जायेंगे ........आइये ऐसी ही कुछ अजब -गजब बात्तों से रूबरू होते हैं ........
घर के दरवाजे
घर के दरवाजे
क्या करोगे ???
कुंजी तेरे दिल की
पास है मेरे
उसे कैसे बंद करोगे ??????
पुरवाई तेरे अंगने की
मेरे जख्मों को सहला गई
कोशिश मेरी रंग लाई
कानों में गुनगुना गई .......
छल करके साहिल से
लेना नही कभी थाह .......
बरसाती नदी नही हूँ
हूँ गंगा सी अथाह .......
बेशरम की झाड़ी जैसे
इधर उधर उग गए
डूबाने मुझे चले थे
खुद ही डूब गए .......
मुझ पर तुम इल्जाम
लगा रहे या खुद को
ही कुछ सिखा रहे हो ??????
मेरा चेहरा दिखा रहे
या अपना चेहरा दिखा रहे हो ??????
जो पाना चाहे
मिले नही
जो सोचा नही वो
मिल जाता है
भाग्य कहो या कहो
प्रारब्ध .....
यही जिन्दगी कहलाता है ......
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ReplyDeleteजो पाना चाहे
ReplyDeleteमिले नही
जो सोचा नही वो
मिल जाता है
भाग्य कहो या कहो
प्रारब्ध .....
यही जिन्दगी कहलाता है ......
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,रचना अच्छी लगी निशा जी ,...
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
बहुत सुंदर निशा जी...................
ReplyDeleteछल करके साहिल से
लेना नही कभी थाह .......
बरसाती नदी नही हूँ
हूँ गंगा सी अथाह .......
लाजवाब रचना.
सस्नेह.
जो पाना चाहे
ReplyDeleteमिले नही
जो सोचा नही वो
मिल जाता है
भाग्य कहो या कहो
प्रारब्ध .....
यही जिन्दगी कहलाता है ...
यही जीवन .....सार्थक पंक्तियाँ
छल करके साहिल से
ReplyDeleteलेना नही कभी थाह .......
बरसाती नदी नही हूँ
हूँ गंगा सी अथाह .......umda
छल करके साहिल से
ReplyDeleteलेना नही कभी थाह .......
बरसाती नदी नही हूँ
हूँ गंगा सी अथाह ...umda
सभी क्षणिकाएं सुंदर ...
ReplyDeleteजोरदार क्षणिकाएं ।
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ।
बधाई ।।
thanks to all....
ReplyDeleteवाह वाह...क्या बात है ।
ReplyDeleteसादर
पुरवाई तेरे अंगने की
ReplyDeleteमेरे जख्मों को सहला गई
कोशिश मेरी रंग लाई
कानों में गुनगुना गई ....
बहुत खूब ... उनके आँगन से आई हवा में कोई जादू सा घुला है ... इतना कुछ कर गई ... सुन्दर रचना ..
मुझ पर तुम इल्जाम
ReplyDeleteलगा रहे या खुद को
ही कुछ सिखा रहे हो ??????
मेरा चेहरा दिखा रहे
या अपना चेहरा दिखा रहे हो ??????... waah
बहुत सुंदर लिखा है आपने..
ReplyDeleteमुझ पर तुम इल्जाम
ReplyDeleteलगा रहे या खुद को
ही कुछ सिखा रहे हो ??????
मेरा चेहरा दिखा रहे
या अपना चेहरा दिखा रहे हो ??????
lajbab prastuti Nisha ji badhai sweekaren
गज़ब!!!
ReplyDeleteमन को छूती हुई क्षणिकाओं में जीवन का सार छुपा है, वाह !!!!!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत क्षणिकाएं ...और भावपूर्ण भी !
ReplyDeleteअनूठे शब्द और अद्भुत भाव से सजी इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteइक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा कतील...
ReplyDeleteजब खुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा...
thanks to all....
ReplyDeleteBahut hi Sundar prastuti. Mere post par aapka intazar rahega. Dhanyavad.
ReplyDeleteजो पाना चाहे
ReplyDeleteमिले नही
जो सोचा नही वो
मिल जाता है
भाग्य कहो या कहो
प्रारब्ध .....
यही जिन्दगी कहलाता है
सही कहा।
लेकिन कर्म भी अपनी जगह सही है।
वाह मैडम जी, क्या खूब कहा है!कवित्त भी दर्शन भी!!
ReplyDeleteछल करके साहिल से
ReplyDeleteलेना नही कभी थाह .......
बरसाती नदी नही हूँ
हूँ गंगा सी अथाह ..
sundar ....ati sundar ...abhar Nisha ji
छल करके साहिल से
ReplyDeleteलेना नही कभी थाह .......
बरसाती नदी नही हूँ
हूँ गंगा सी अथाह ......
वाह!
bahut sundar..
ReplyDeleteजो पाना चाहे
ReplyDeleteमिले नही
जो सोचा नही वो
मिल जाता है
भाग्य कहो या कहो
प्रारब्ध .....
यही जिन्दगी कहलाता है ....
वास्तव में अजब गजब प्रस्तुति है आपकी.
निशा जी,सब ठीक तो है.
मेरे ब्लॉग पर आपके दर्शन न होने से
चिंतित हूँ.
बहुत सुन्दर रचना...मजा आ गया!
ReplyDeleteजो पाना चाहे
ReplyDeleteमिले नही
जो सोचा नही वो
मिल जाता है
भाग्य कहो या कहो
प्रारब्ध .....
यही जिन्दगी कहलाता है ....
आपने सही कहा और यही जीवन की सच्चाई है
RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
कष्टदायक अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteशुभकामनायें डॉ निशा !
सभी क्षणिकाएँ बहुत उम्दा, बधाई.
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन
ReplyDeleteजीवन के विविध रंगों को समेटने की एक अच्छी कोशिश।
ReplyDeletethanks to all.......
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