ब्लोगर्स साथियों आप सबको नव वर्ष की बहुत-बहुत शुभकामना....
आइये आज मै आप सबको अपने जीवन का वो अनुभव बताउं जिसे पूरा हुए सात साल हो गये |
२९ दिसंबर २००४ को मेरे ब्रेस्ट केंसर का आपरेशन हुआ था ........उस अनुभव को आप सबसे शेयर
करने का आज मौका मिला है | वैसे भगवान की कृपा से मै स्वस्थ्य हूँ और आगे भी भगवान की ही
मर्जी |
आज भी मेरे मन मस्तिष्क पर
आश्चर्य एवम भय मिश्रित रेखा है
जबसे मैंने अपने आसपास
मंडराते मौत को देखा है !
मरने से नही डरती हूँ
खुद के गम को हरती हूँ
लम्बी आहें भरती हूँ
झरनों जैसी झरती हूँ
पल पल खुद से लडती हूँ
खुद को देती रहरहकर
विश्वास भरा दिलासा
नही है मकडजाल मेरा
न ही है कोई धोखा
जीना कुछ कुछ सीख गई हूँ
जबसे मौत को देखा है |
मौत को सामने देख कर मै ...........
ठिठक गई थी..... मेरी सांसे ........
मेरी जिन्दगी...... थम सी गई थी
मुझे यूँ घबराया देख
वो मेरे सामने आई ........
मेरे सहमे हुए दिल को
प्यार से सहलाया औ ...समझाया ...
जीवन औ मौत तो
जन्म -जन्मों के मीत हैं
समझ लूँगी इन बातों को
सचमुच जिस दिन
उस दिन होगी मेरी जीत
जन्म औ मृत्यु है ऐसे
जैसे पी संग प्रीत |
मैंने मौत की आँखों में झांकते हुए कहा .......
महानुभाव! मै आपको अच्छी तरह जानती हूँ
आपके आने के कारणों को
अच्छी तरह पहचानती हूँ
आपकी वजह से मैंने बड़े से बड़ा .....
दुःख सहा है पर ........
याद करें क्या मैंने ?
कभी आपको उलाहना दिया है ?
अपनों के मौत की पीड़ा
क्या होती है ......
मौत होने के कारण
क्या आपने इसे कभी सहा है ?
मै मौत से नही डरती
आपको देखकर लम्बी आहें
नही भरती ......
डरती हूँ तो सिर्फ औ सिर्फ .....
अपनों से बिछुड़ने की पीड़ा से
ये सोचकर की मेरे बाद
मेरे बच्चो का क्या होगा ?
जो सपने मैंने उनके लिए बुने हैं
उन सपनों का क्या होगा ?
मौत बड़े प्यार से मेरे पास आई
आँसू भरे दो नैनों को
आँसुओ से मुक्त कराया औ कहा...........
मै भी इतनी निर्दय नही हूँ ....
दुःख तो मुझे भी होता है
जब साथ किसी अपनों का छूटता है
पर !मै अपने दिल का दर्द
किसे बताउं ........
अपनी जिम्मेदारियों से कैसे
भाग जाऊ?
मै जानती हूँ
माया मोह के बंधन को तोड़ने में
वक्त तो लगता है .....
अधूरे सपनों को मंझधार में छोड़ने में
दर्द तो होता है |
मैने मौत से आग्रह किया ........
गर आप मेरे दुःख से दुखी हैं
तो .......मेरे ऊपर एक एहसान कीजिये
ज्यादा नही पर इतना वक्त दीजिये
जिससे मै अपने अधूरे काम निबटा सकूँ
उसके बाद आप जब भी आयें मै .....
ख़ुशी-ख़ुशी आपके साथ जा सकूँ
पलक भर के लिए उसने मुझे देखा
फिर मन ही मन कुछ बोली औ कहा .......
जिजीविषा औ विजिगीषा की पहचान हो तुम निशा ......
आशा औ विश्वास की खान हो तुम निशा
मै तुम्हारी नही तुम्हारे विश्वास की कद्र करती हूँ
अपने आधे अधूरे कार्य को पूरा कर सको
मै तुम्हे इतना वक्त देती हूँ ......
मौत से मिले इस उधार वक्त की
कीमत मै जान गई हूँ
जीना किसको कहते हैं
इसको कुछ -कुछ जान गई हूँ |
आइये आज मै आप सबको अपने जीवन का वो अनुभव बताउं जिसे पूरा हुए सात साल हो गये |
२९ दिसंबर २००४ को मेरे ब्रेस्ट केंसर का आपरेशन हुआ था ........उस अनुभव को आप सबसे शेयर
करने का आज मौका मिला है | वैसे भगवान की कृपा से मै स्वस्थ्य हूँ और आगे भी भगवान की ही
मर्जी |
आज भी मेरे मन मस्तिष्क पर
आश्चर्य एवम भय मिश्रित रेखा है
जबसे मैंने अपने आसपास
मंडराते मौत को देखा है !
मरने से नही डरती हूँ
खुद के गम को हरती हूँ
लम्बी आहें भरती हूँ
झरनों जैसी झरती हूँ
पल पल खुद से लडती हूँ
खुद को देती रहरहकर
विश्वास भरा दिलासा
नही है मकडजाल मेरा
न ही है कोई धोखा
जीना कुछ कुछ सीख गई हूँ
जबसे मौत को देखा है |
मौत को सामने देख कर मै ...........
ठिठक गई थी..... मेरी सांसे ........
मेरी जिन्दगी...... थम सी गई थी
मुझे यूँ घबराया देख
वो मेरे सामने आई ........
मेरे सहमे हुए दिल को
प्यार से सहलाया औ ...समझाया ...
जीवन औ मौत तो
जन्म -जन्मों के मीत हैं
समझ लूँगी इन बातों को
सचमुच जिस दिन
उस दिन होगी मेरी जीत
जन्म औ मृत्यु है ऐसे
जैसे पी संग प्रीत |
मैंने मौत की आँखों में झांकते हुए कहा .......
महानुभाव! मै आपको अच्छी तरह जानती हूँ
आपके आने के कारणों को
अच्छी तरह पहचानती हूँ
आपकी वजह से मैंने बड़े से बड़ा .....
दुःख सहा है पर ........
याद करें क्या मैंने ?
कभी आपको उलाहना दिया है ?
अपनों के मौत की पीड़ा
क्या होती है ......
मौत होने के कारण
क्या आपने इसे कभी सहा है ?
मै मौत से नही डरती
आपको देखकर लम्बी आहें
नही भरती ......
डरती हूँ तो सिर्फ औ सिर्फ .....
अपनों से बिछुड़ने की पीड़ा से
ये सोचकर की मेरे बाद
मेरे बच्चो का क्या होगा ?
जो सपने मैंने उनके लिए बुने हैं
उन सपनों का क्या होगा ?
मौत बड़े प्यार से मेरे पास आई
आँसू भरे दो नैनों को
आँसुओ से मुक्त कराया औ कहा...........
मै भी इतनी निर्दय नही हूँ ....
दुःख तो मुझे भी होता है
जब साथ किसी अपनों का छूटता है
पर !मै अपने दिल का दर्द
किसे बताउं ........
अपनी जिम्मेदारियों से कैसे
भाग जाऊ?
मै जानती हूँ
माया मोह के बंधन को तोड़ने में
वक्त तो लगता है .....
अधूरे सपनों को मंझधार में छोड़ने में
दर्द तो होता है |
मैने मौत से आग्रह किया ........
गर आप मेरे दुःख से दुखी हैं
तो .......मेरे ऊपर एक एहसान कीजिये
ज्यादा नही पर इतना वक्त दीजिये
जिससे मै अपने अधूरे काम निबटा सकूँ
उसके बाद आप जब भी आयें मै .....
ख़ुशी-ख़ुशी आपके साथ जा सकूँ
पलक भर के लिए उसने मुझे देखा
फिर मन ही मन कुछ बोली औ कहा .......
जिजीविषा औ विजिगीषा की पहचान हो तुम निशा ......
आशा औ विश्वास की खान हो तुम निशा
मै तुम्हारी नही तुम्हारे विश्वास की कद्र करती हूँ
अपने आधे अधूरे कार्य को पूरा कर सको
मै तुम्हे इतना वक्त देती हूँ ......
मौत से मिले इस उधार वक्त की
कीमत मै जान गई हूँ
जीना किसको कहते हैं
इसको कुछ -कुछ जान गई हूँ |
बहुत अच्छा लिखा है मैम!
ReplyDeleteनए साल की शुभकामनाओं के साथ आपके अच्छे स्वास्थ्य की भी कामना है।
सादर
सुंदर बहुत सुंदर !
ReplyDeleteईश्वर करे आने वाला साल आपके लिए ढेर सारी खुशियाँ सेहत और समृद्धि ले कर आये !
मेरी नई रचना
एक ख़्वाब जो पलकों पर ठहर जाता है
मौत से मिले इस उधर वक्त की
ReplyDeleteकीमत मै जान गई हूँ
जीना किसको कहते हैं
इसको कुछ -कुछ जान गई हूँ |
तकलीफ तो कुछ सीखाने के लिए ही आती है ..
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ..
आने वाला वर्ष आपके लिए मंगलमय हो !!
Wow mam.... this is awesome
ReplyDeletemout ka hara diya aapne bahut achhi post
ReplyDeleteमौत से मिले इस उधर वक्त की
ReplyDeleteकीमत मै जान गई हूँ
जीना किसको कहते हैं
इसको कुछ -कुछ जान गई हूँ |…………शायद जीना इसी का नाम है…………ये आपने जान लिया ……………आपकी जीवटता को सलाम्………नववर्ष आपके जीवन मे ढेरों खुशियाँ लेकर आयें ।
बहुत अच्छी तरह से व्यक्त किया आपने अपनी भावनाओं को...
ReplyDeleteईश्वर आपको सदा स्वस्थ रखें...और दीर्घायु प्रदान करें...
और आप ऐसे ही अच्छा अच्छा लिखती रहें,प्रसन्न रहें.
शुभकामनाएं...
बहुत ही सशक्त लेखन....
ReplyDeleteसादर बधाई...
आप का नाम ही निशा है...आप तो वास्तव में भोर हैं, जिजीविषा हैं!
ReplyDeleteआप लंबा, सार्थक जीवन जीयें...अपने और पड़ोसियों के सभी अधूरे पड़े काम पूरे करें, और कमबख़्त मौत को अंतहीन इंतज़ार कराएं!!
नव वर्ष की शुभकामनायें!!
bahut badhiya abhivyakti...
ReplyDeletebadhayi.
bahut acchhi marmik kavita.
ReplyDeletemaut ek katu saty hai...bhala ho uska jo aap par ehsaan kar gayi...aur apka dar chhor kar chal di.
prastuti bahut sunder hai.
बहुत ही बढि़या प्रस्तुति
ReplyDeleteनववर्ष की अनंत शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
अरे वाह! आप तो सच में बहुत बहादुर है निशा जी.
ReplyDeleteआपकी अनुपम प्रस्तुति मेरा मनोबल बढाती है.
आपसे ब्लॉग जगत में परिचय होना मेरे लिए परम सौभाग्य
की बात है.बहुत कुछ सीखा और जाना है आपसे.इस माने में वर्ष
२०११ मेरे लिए बहुत शुभ और अच्छा रहा.
मैं दुआ और कामना करता हूँ की आनेवाला नववर्ष आपके हमारे जीवन
में नित खुशहाली और मंगलकारी सन्देश लेकर आये.
नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत सुन्दर वाह! गुरुपर्व और नववर्ष की मंगल कामना
ReplyDeleteआपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteनये वर्ष की शुभकानाओं के साथ
ReplyDeleteजिन्दगी बेवफा है मौत बेवफा नहीं होती,
मौत से मुलाकात रह दफा नहीं होती,
जिन्दगी का भरोसा नहीं कब छोड़ दे साथ,
एक मौत ही है जो कभी खफा नही होती।
भावुक कर देने वाली रचना।
ReplyDeleteआप सदा स्वस्थ रहें।
शुभकामनाएं।
ishwar aapko sada swasth rakhe...
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो ..
बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें
नए साल के अवसर पर प्रस्तुत किया गया यह काव्य काफ़ी पसंद आया।
ReplyDeleteशुभकामनाएं।
सुन्दर लेखन ..सदैव सकारात्मक विचार रखना ही जीवन में प्रगति का पथ अग्रसर करता है ..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.com
रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट " जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी" पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । नव-वर्ष की मंगलमय एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ ।
ReplyDeleteनिशा जी,
ReplyDeleteअच्छा लगा आपने अपना अनुभव हमसे बांटा !
जीवन में नया नर्ष तो आता ही है पर नया जीवन पाना
बड़ा मुश्किल है जो की आपको मिला है ! इसे सार्थक बनाइये
हर पल भरपूर जीने की कोशीश कीजिये !
नवजीवन की बहुत बहुत बधाई आपको !
जीव यहां से फ़िर चलता है
ReplyDeleteधारण कर नव जीवन संबल।
वक्त की कमी के कारण आपकी कई रचनाएँ नहीं पढ़
ReplyDeleteसका हूँ | अभी -अभी एक रचना पढ़ी है, बहुत ही सुन्दर
लगी | आप सदा स्वस्थ रहें, ये ही हमारी कामना है |
यदि सोच विपरीत है
ReplyDeleteतो हरपल में भीत है
यह जगती की रीत है
डर के आगे जीत है.......
जीवन के पन्नों को सबके साथ साझा किया, निश्चय ही बहुतों को जीने का सलीका आ जाएगा.एक सकारात्मक संदेश गर्भित है इस रचना में, वाह !!!!
बहुत सकारात्मक सोच जिसने आपको इस बीमारी पर विजय प्राप्त करने की शक्ति दी. मेरी पत्नी भी इसका शिकार हुई थी लेकिन अपनी इच्छा शक्ति के बल पर उस पर विजय पायी और अपना दर्द कभी हमारे सामने नहीं आने दिया. बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...नव वर्ष की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteओह ! निशा जी ,
ReplyDeleteआज तो आपने नि:शब्द कर दिया ..
फिर मन ही मन कुछ बोली औ कहा .......
जिजीविषा औ विजिगीषा की पहचान हो तुम निशा ......
आशा औ विश्वास की खान हो तुम निशा
मै तुम्हारी नही तुम्हारे विश्वास की कद्र करती हूँ
अपने आधे अधूरे कार्य को पूरा कर सको
मै तुम्हे इतना वक्त देती हूँ ......
मौत से मिले इस उधार वक्त की
कीमत मै जान गई हूँ
जीना किसको कहते हैं
इसको कुछ -कुछ जान गई हूँ |
जीना किसे कहते हैं सीख रही हूँ आपकी इन पंक्तियों से ...
thanks kailash jee n sangeeta jee.
ReplyDelete
ReplyDeleteजीवन और कर्तव्य-भावना की
विजय का उल्लास आपमें सदा नई ऊर्जा का संचार करता रहे -आगे का सफ़र बहुत ख़ुशनुमा रहे!
dhanyavad pratibha jee .......
ReplyDelete
ReplyDeleteआपकी मौत से मुलाकात .उस से बातचीत इतना सजीव है ,लगता है सच में मौत से बात कर रही है, बहुत सुन्दर भावपूर्ण आख्यान .शुभकामनाएं
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