Monday 28 July 2014

मैं जननी

शिमला तेरी वादियों में 
मन को मोड़ आई हूँ 
अपने ज़िगर के टुकड़े को 
तेरे सानिध्य में छोड़ आई हूँ.…

उचित-अनुचित ,अच्छे-बुरे का 

देना अब तुम ज्ञान 
मैं जननी तूँ जगदम्बा 
रखना उसका ध्यान........