Thursday 20 March 2014

माँ----बनकर देखो -

हर साँस से  सपने 
उर से स्नेह ---
 प्रकृति के कण -कण से 
सुखों की  बरसात हो रही थी 
उपलब्धि बड़ी नहीं--छोटी सी (?) थी ---
एक माँ अपने बच्चे को ढूध पिला रही थी-- 

नकली आवरण 
नकली शानों-शौकत 
नकली खुशियों को फेंको 
दुनियाँ तेरी बदल जायेगी 
माँ----बनकर देखो ----