ब्लागर सथियों आज अपनी यात्रा का संचिप्त विवरण प्रतुत कर रही हूँ ......
हम चार परिवार थे जिन्होंने एक साथ इस यात्रा का प्लान बनाया था ...जिनमे आठ बड़े और पाँच बड़े बच्चे थे .हरिद्वार में ही टूरिस्ट एजेन्सी से बात करके टेम्पों ट्रेवेलर जो की 14 सीटर थी उसे बुक कराया .वैसे खतरनाक
रास्तों को देखकर मुझे महसूस हुआ की बस में जाने के बजाय इस प्रकार की गाडी ही ठीक है ..हम सुबह नौ बजे हरिद्वार से चले थे एजेंसी के प्लान के अनुसार हमे शाम तक जानकी चट्टी पहुचना था पर नही पहुच पाए ...इसका कारण शायद ये भी हो सकता है की गाड़ी हरिद्वार से देर से चली और गाड़ी तथा ड्राईवर दोनों पंजाब के थे .ड्राईवर को रस्ते की जानकारी नही थी .....सच ये जानकर मुझे और भी डर लगने लगा था ...मैंने खुद को जीभर कोसा की ये जानकारी मैंने पहले क्यों नही ली ...खैर अब तो कुछ नही किया जा सकता था ...
मैंने ड्राईवर से कहा ..भैया गाड़ी धीरे चलाओ ....उसने भी सहमती वयक्त करते हुए गाडी धीरे चलाई ..अंजान होने की वजह से रास्ते की जानकारी भी लेनी पड़ती थी ....शाम करीब सात बजे हम सयाना चट्टी के पहले पालिगाड नामक स्थान में रुके .यात्रा को सुखमय बनाने के लिए ये जरूरी है की सुबह जितना जल्द हो रवाना हो जाईये और शाम को विश्राम कीजिये इससे होटल भी अच्छा और उचित रेट पर मिल जाता है ..
रात हो जाये तो मज़बूरी में रहना पड़ेगा ....आइये चित्रों के माध्यम से आप भी एक झलक लें ....
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यमुनोत्री देहरादून और मसूरी होकर गए थे ....मसूरी की एक झलक .....
साथ में पतिदेव और उनकी बहन ......
पालिगाड का वो होटल जिसने हमें बसेरा प्रदान किया ...
हम प्रथम ग्राहक थे उसके ....अपनी रोटी खुद बनाई थी ...
असल में जानकी चट्टी के चक्कर में देर हो गई फिर अंधेरा छाने लगा था ..अत:रुकना पड़ा ...
वाह मनभावन दृश्य ......थकान और रास्ते का भय काफूर ......
जानकी चट्टी से चढ़ाई शुरू कर दी समय 8.30(सुबह )
थोडा आराम .......
वो राही तुम रूको नहीं ....
वीर तुम बढे चलो ......
चाय पी लेते हैं ......
यमुनाजी के दर्शन कर लें ......
5 किलोमीटर की दूरी हमने 4.5 घंटे में पूरी की।.
अकेले उतरने का भी अलग मजा है ...कोई तनाव नही ...प्राकृतिक दृश्यों को देखते हुए बहुत अच्छा लगता है. ..
सच में जीवन में जब आप उँचाई पर चढ़ते हैं ...तब साथ की जरुरत होती है क्योकि उस समय
हम दबाव और तनाव में जीते हैं पर नीचे उतरते हुए हम बेफिक्र होते हैं ...दौलत और शोहरत
हमें कमजोर बनाती है ...मजबूत नही ....अत: इन्सान को उसे अपनी दासी बनानी चाहिए उसका दास
नही बनना चाहिए .......ये मेरे विचार हैं आपकी आप जानो.......
आख़िरकार जंग जीत ली .....विश्वास नही होता ......
नीचे उतर गए हम .......
यात्रा को आसान बनाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखें ....
सभी के पास पैसे होने चाहिए ...
समूह में लोग बिछड़ जातें हैं ...बच्चों के साथ कोई न कोई अवश्य रहें ...
जो चल नही पातें वे पालकी में जाएँ ....
खच्चर हरगिज न करें ....
चढ़ते या उतरते समय कोशिश करें की पहाड़ी के तरफ रहें ...
एक शाल या स्वेटर अवश्य रखें ....
बाकि भगवान् पर छोड़ दें .....
चलिए फिर मिलेंगे ...........