Friday 25 November 2011

फुरसत के लम्हे


सोचा था मैंने-------
सच्चाई को शब्दों की
जरुरत नहीं होती-----
पता नही था----
चुप रहनेवालों को
दुनिया चोर समझती है।




गम इस बात का नहीं------
बिना किसी गुनाह के
उसने इलज़ाम लगाया मुझपे-----
गम इस बात का है
मेंने झूठ को सच के साये में
पलने दिया।


वो नहीं समझ पायेंगे कभी-------
मेंने ऐसा क्यों किया ?
सदियों चल सकती थी सायेमें   उसके----
फिर भी कुछ लम्हों को  क्यों जिया ?????????


Friday 11 November 2011

कैसे कहूँ ?


आदर्श,मर्यादा,समर्पण,ईमानदारी औ
नित नये-नये प्रयोग की ज़मीं पे
मन मेरा है जीता
यही मेरा जीवन है औ
यही है गीता।
इन मूल्यों को अपनाकर
क्या-क्या मैने पाया
पाने के क्रम में
कैसे कहूँ ?
क्या-क्या मैने खोया।
खोने के गहरे ज़ख्मों को
कैसे ? किसको ? दिखलाऊँ
इन रिस्ते ज़ख्मों पर कैसे?
मरहम मैं लगवाऊँ ?
नैनों को हँसते सबने देखा
दिल की पीडा किसने जानी ?
सदियों से चली आ रही
खोने औ पाने की ये करुण कहानी।
छोटी-छोटी इन बातों से
अमावस की काली रातों से
ना घबराना प्यारे तुम
हमेशा याद रखना
दुःख के गहन अंधेरों में
द्विविधा की बोझिल पहरों में
हर इंसान हमेशा अकेला हीं
खडा रहता है
इन बाधाओं को पार कर जो
अपना परचम लहराता है
आनेवाले पल का वही
सिकन्दर कहलाता है
वही सिकन्दर कहलाता है।

Friday 4 November 2011

सच कहूँ ?

तुम्हारी एक खामोश नज़र ने 
मुझे दिखा दिये
तुम्हारे बरसों से धारण किये हुये
धेर्य को 
तुम्हारी प्रतीक्षा करने की शक्ति को 
सलाम है तुम्हारी इस भक्ति को
जिसने पत्थर को पिघला दिया 
जो दिन मुझे नही देखना था
वो दिन भी दिखला दिया
जो सहन नहीं कर सकती थी
उसे सहना सिखा दिया
जो बहना मुश्किल था
उसे निर्झर बना बहा दिया़ 
अनवरत अहर्निश,सच कहूँ ?
लिखे गये ये शब्द , मेरी उक्ति नही 
बल्कि तेरी ही अभिव्यक्ति है
महसुस  हो गया है 
मुझे कि प्यार में कितना दम होता है
कितना भी व्यक्त करो ये हमेशा कम होता है।